दूर रहकर तो तुम बड़े सवाल करती हो,
कभी पास आकर भी आज़मा लिया होता।
रोज़ ख़्वाबों में आकर कमाल करती हो,
ज़िन्दगी में भी एक कदम जमा लिया होता।
किसी मंज़िल की तलाश तो अब रही नहीं,
जहाँ हूँ बस वही ठिकाना अंतिम लगता है।
दिल के अंदर ये जो एक लौ जल रही,
इसके सामने सूरज भी मद्धम सा लगता है।
तुम थी तो काफ़ी अरमां भी जिंदा थे मुझमें,
नहीं हो तो वो भी अब फ़ना हुए जा रहे हैं।
तब हकीकत की तस्वीर दिखाई पड़ती थी,
अब ये ख़्वाब ही मेरे आशना हुए जा रहे हैं।
मुमकिन है कि ये सुनकर थोड़ी हैरान होगी,
अब मेरी चौखट पर फिर कभी लौटना नहीं।
हलचल है जिस ज़मीं पर वो सुनसान होगी,
पंछी हो अपनी इस उड़ान को रोकना नहीं।
~नवीन