मंगलवार, 6 सितंबर 2016

पंछी

दूर रहकर  तो  तुम  बड़े  सवाल  करती हो,
कभी पास आकर भी  आज़मा लिया होता।
रोज़  ख़्वाबों में  आकर  कमाल  करती  हो,
ज़िन्दगी में भी एक कदम जमा लिया होता।

किसी मंज़िल की तलाश  तो अब रही नहीं,
जहाँ हूँ  बस वही ठिकाना अंतिम लगता है।
दिल  के  अंदर  ये  जो  एक  लौ  जल  रही,
इसके सामने सूरज भी मद्धम सा लगता है।

तुम थी तो काफ़ी अरमां भी जिंदा थे मुझमें,
नहीं हो तो  वो भी अब फ़ना हुए जा रहे हैं।
तब हकीकत की तस्वीर दिखाई पड़ती थी,
अब ये ख़्वाब ही मेरे आशना हुए जा रहे हैं।

मुमकिन है कि ये सुनकर थोड़ी हैरान होगी,
अब मेरी चौखट पर फिर कभी लौटना नहीं।
हलचल है जिस ज़मीं पर वो सुनसान होगी,
पंछी हो  अपनी इस उड़ान को रोकना नहीं।

~नवीन

मंगलवार, 30 अगस्त 2016

वही चिराग़ हो तुम...

अँधेरे के छंटते ही  उस नन्हे चिराग़ को भुला दिया जाता है,
कुछ लोगों ने तुम्हें भुला दिया तो इसमें कोई नयी बात नहीं।
~नवीन

शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

आज  उससे  कुछ कहते-कहते  कई बार रुक गया मैं,
उसकी ही लिखी कहानी उसी को सुनाता भी तो कैसे।

बुधवार, 3 अगस्त 2016


आज भी तू मेरी साँसों में बसती है,
और तुझ बिन मेरा वज़ूद भी कब था?
मोहब्बत तो अब यादों से ही ज़िन्दा है,
वरना मेरे इश्क का कोई सबूत कब था?
दिल का दर्द ही सुनना है तो सुन लो,
अक्सर इन आँखों में आती है ये नमी।
ज़िन्दगी का सफ़र भी कट ही जाएगा,
रह भी जायेगी तो हमसफ़र की कमी।
दुनिया तो आज भी ग़लतफहमी में है,
कि मैंने तुझे पाने की दुआएं न मांगी।
क्या मेरे ख़्वाब कभी तुझसे अलग थे,
या फ़िर तुझसे तेरी खताएं ना मांगी।
माना कि ज़रा ज़मीनी दूरियाँ तो थीं,
पर ये दिल तुझसे इतना दूर कब था?
साथ जीने की तमन्ना लिए मन में,
अकेले जिए जाने को मजबूर कब था?
एक अर्ज़ी मेरी भी है तेरी फ़ेहरिस्त में,
हो सके तो उसे ज़रा तरज़ीह दे देना।
सुना है दुनिया को खुशियाँ बाँटती हो,
सूने अंजुमन को भी एक मसीह दे देना।
....©नवीन सिंह

सोमवार, 1 अगस्त 2016

और क्या चाहिए...

अंजुमन गुलज़ार है एक खिलखिलाती हँसी से,
और  क्या चाहिए  दिल  को  बहलने के लिए।
जाते-जाते  छोड़  गयी  हो  संदली सी  ख़ुशबू,
और क्या चाहिए  फ़िज़ा को  महकने के लिए।
बीते लम्हों की  परछाई में भी  एक नशा सा है,
और  क्या चाहिए  दिल को  बहकने  के लिए।
ख़्वाबों में ही सही  हाथों में  तेरा हाथ  होता है,
और  क्या चाहिए  मुझको  सम्भलने  के लिए।
~नवीन

रविवार, 31 जुलाई 2016

ग़लती...

तुमसे  कोई शिकायत हो  भी  तो आख़िर क्यों,
तुम तक  दिल लगाने के लिए  हम ही आये थे।
मशहूर  तो  तुम  थे  ही  दिल तोड़ने  के  लिए,
ग़लती हमारी थी ख़्वाब सजाने हम ही आये थे।
~नवीन

शनिवार, 30 जुलाई 2016

एक वादा...

आप अपना सुरूर  हमसे  ज़रा दूर  रखिये,
अब हम  उसके लिए  नाक़ाबिल हो गए हैं।
मुमकिन हो तो मन में नफ़रत ज़रूर रखिये,
अब हम  एक गुनहगार  क़ातिल हो गए हैं।

देखना हो  कि  क़त्ल किसका हुआ मुझसे,
ख़ुद से पल भर के लिए रूठकर देख लेना।
ग़र न आये  यकीं  या  महसूस  न हो  ऐसे,
एक दफ़ा  मोहब्बत  में  टूटकर  देख लेना।

आपके लिए तो ये नयी-नयी सी बात होगी,
कोई शाम थी कि  मैं भी ऐसे ही हैरान था।
कभी किसी रोज़ मुझ पर भी बरसात होगी,
ऐसे ही उलझे  सवालों से  परेशान भी था।

इस इंतज़ार की हदें भी मैंने ही तय की थी,
ज़रूरत थी तो बस ख़ुद को आजमाने की।
कुछ लम्हों में  ही  हदें भी  वज़ूद खो बैठीं,
हम ख़ुद ही ख़ता कर बैठे दिल लगाने की।

किसी को मैं भी ऐसी तड़प का तोहफ़ा दूँ,
माफ़ करना, नहीं ऐसा कोई इरादा था मेरा।
दिल में  उसके नाम का दीया जलाये रखूँ,
उस ख़ास से  बस इतना सा वादा था मेरा।

~नवीन